expr:class='data:blog.pageType'>

4 Days Trip to Banaras : A Complete Travel Guide

 4 Days Trip to Banaras : A Complete Travel Guide

4 Days Trip to Banaras : A Complete Travel Guide
4 Days Trip to Banaras : A Complete Travel Guide


हेलो दोस्तों,
                कैसे हैं आप सभी
                            2022 जा चुका है और नया साल 2023 आ गया है जो कि नयापन, नया उत्साह लेकर आया है वैसे तो शायद मेरे अंदर के नयेपन की वजह नया वर्ष नहीं बल्कि मेरी Last Trip है
                            मेरी last trip अब तक कि मेरी सभी trip में सबसे ज्यादा सुकून, शांति और खुशी देने वाली थी और साथ ही यह मेरे Biggest 3 dreams का भी हिस्सा थी
                           
                             ना जाने कब से यहां आने का प्लान कर रही थी पर  किसी ना किसी कारण से आना Cancel हो रहा था पर finally बाबा विश्वनाथ की कृपा हुई और मैं पहुंच गई बनारस।
                             अभी हाल ही में मैंने New Year Celebrate करने के लिए India में आप कहां जा सकते हैं इसके बारे में बताया था और उसी blog के suggestion में एक था , वाराणसी।
                             तो मैंने भी 2022 की Last Trip वही करने की सोची।

बनारस

    ऋग्वेद (1500 ईसा पूर्व) वाराणसी को काशी (चमकने के लिए) के रूप में वर्णित करा गया है, 


हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, शहर की स्थापना हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक भगवान शिव ने की थी। भगवान शिव के दूसरे घर के रूप में भी जाना जाता है, यह भगवान शिव को समर्पित काशी विश्वनाथ मंदिर और भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।


                      यह शहर न केवल हिंदू धर्म बल्कि बौद्ध धर्म के एक पवित्र स्थल के लिए भी प्रसिद्ध है। वाराणसी में, गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को अपना पहला उपदेश दिया और 528 ईसा पूर्व के आसपास बौद्ध धर्म की स्थापना की।

              जन्म से लेकर मृत्यु तक यहां काशी में संगीत बजता है। बनारस की मौज मस्ती को किसी खास दायरे में नहीं बाँधा जा सकता,
7 पवित्र शहरों, 52 शक्ति पीठों और 12 ज्योतिलिंगों में से एक इस शहर में अजीब आकर्षण, एक अलग अहसास है जो लोगों को अपनी ओर खिचता है।
                            

                   काशी बनारस या वाराणसी एक ही शहर के 3 नाम है और तीनों की अपनी कहानी है अपना इतिहास है अगर आप भी काशी-बनारस-वाराणसी की कहानी जानना चाहते हैं तो आप नीचे दिए blog में जाकर जान सकते हैं।
                  
               तो चलिए अब हम अपनी कहानी में चलते हैं बनारस का मेरा यह सफर इंदौर से शुरू हुआ बनारस Roadways, Railway और Airways के द्वारा अच्छे से कनेक्टेड है।
             
         मैं indore Patna express से बनारस पहुंची बनारस का मेरा यह Trip 4 दिन का था और सच कहूं तो घूमने से ज्यादा यह Trip खुद की खोज और मन की शांति के लिए थी।
         मैं बनारस सुबह 11:00 बजे पहुंच गई थी और यहां रुकने की जगह मैंने पहले ही डिसाइड कर ली थी तो मैं डायरेक्ट अपने Hotel-Hostel पहुंच गई और मैं जहां रूकी थी वो था Mad Squad Hostel

 
                           Mad squad hostel बेनिया बाग, सूरज कुंड इलाके में स्थित एक हॉस्टल है जिसमें Dormitory और Capsule के साथ-साथ Single Rooms भी Available है यह एक अच्छा बजट हॉस्टल है जो आपको Friendly Environment के साथ-साथ Comfort Zone भी देता है।

           Well, Mad Squad में मेरा Stay  बहुत Comfortable और Cozy था Mad Squad नई सड़क पर स्थित है यह Hostel बाहर से तो ठीक-ठाक था अंदर से बहुत ही अच्छा था एक अलग ही Vibes थी यहां पर, Youngsters के लिए एक अच्छा विकल्प है।
यह विश्वनाथ टेंपल से 1.3 किलोमीटर दूर है और घाट से 1.3 किलोमीटर दूर था Mad Squad Hostel में अपने 3 दिन के Stay पर मैंने Hostel Review भी लिखा है जिसे आप नीचे दिए Link में जाकर पढ़ सकते हैं।



Day 1

           Hostel काफी अच्छा था तो यहां पहुंच कर check in करने के बाद मैं जल्दी से रेडी हो गई और निकल पड़ी बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने को।
          वैसे मेरी यह Unplanned Trip थी और मैंने ज्यादा Research भी नहीं की थी तो मैंने सबसे पहले अपनी Dream List को कवर करने की सोची और मैं पहुंच गई बाबा विश्वनाथ के द्वारे में
         
                  

काशी विश्वनाथ मंदिर

               काशी विश्वनाथ मंदिर मेरे हॉस्टल से 1.3 किलोमीटर दूर था जहां आसानी से पैदल जाया जा सकता है तो पैदल वॉक करते हुए दालमंडी से होते हुए मैं मंदिर के सामने पहुंच गई।
 
                    मैं गेट नंबर 4 से सुरक्षा जांच प्रक्रिया पूर्ण करते हुए अंदर पहुंची, गुरुवार का दिन था और दोपहर का समय था जिस कारण शायद भीड़ बहुत ज्यादा नहीं थी तो मुझे ज्यादा लंबी लाइन का सामना नहीं करना पड़ा यहां देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु आए थे जिनकी भाषा, वेशभूषा, पूजा प्रक्रिया अलग अलग थी पर सभी मैं भक्ति आस्था एक जैसी थी।
                    कतार में लगे लोग अपनी श्रद्धा के कारण दूध फूल मालाएं बेलपत्र आदि लेकर चल रहे थे पर मैं खाली हाथ थी जिसने सब दिया उसे मैं क्या ही दूं ऐसे भाव तो थे ही इसके साथ ही मेरे कुछ निजी विचार भी थे


"जब मैं पहली बार उज्जैन महाकाल के दर्शन के लिए गई थी तब आस्था और भक्ति से सरोकार होकर मैंने भी फूल मालाएं ले ली थी पर श्रद्धालुओं की भीड़ भाड़ और लंबी-लंबी कतारों के कारण मुझे रास्ते में बहुत जगह बेलपत्र और फूल मालाएं पड़ी मिली जिसका निष्कर्ष यह निकलता है कि लोग बहुत श्रद्धा भाव और उत्साह से फूल मालाएं तो खरीद लेते हैं पर दर्शन के लिए जाते समय लंबी कतारें होने और भीड़भाड़ होने से बहुत सारे फूल मालाएं और बेलपत्र नीचे गिर जाते हैं जिसे ना तो कोई उठाता है बल्कि बहुत सारे लोगों के पैरों के नीचे भी वह आते हैं तभी मैंने निश्चय कर लिया था कि मैं इस तरह फूल बेलपत्र नहीं लूंगी इसके बाद जब भी मैं उज्जैन या किसी भी भीड़ भाड़ वाले मंदिरो में गई मैंने  कभी भी फूल बेलपत्र नहीं लिए बल्कि कोशिश कि अगर रास्ते में मुझे कोई फूल बेलपत्र मिले तो उन्हें उठाकर साइड कर दूं क्योंकि कई बार श्रद्धा के नाम पर हम जाने अंजाने में अपनी आस्था को ठेस पहुंचा देते हैं"

                     


 धीरे-धीरे कतार आगे बढ़ रही थी और मैं मुख्य प्रांगण में पहुंच गई यहां पहुंच कर एक अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही थी जिसे शायद शब्दों में बयां करना थोड़ा मुश्किल है।
                    ना जाने कब से यहां आने का सोच रखा था और सौभाग्य से आज मानों कोई मुराद पूरी हो गई हो और काशी विश्वनाथ बाबा ने मुझे यहां बुला ही लिया।
                                 काशी विश्वनाथ मंदिर का मुख्य प्रांगण बहुत ज्यादा बड़ा नहीं था यहां मुख्य मंदिर के साथ साथ अलग-अलग छोटे मंदिर भी थे।
                    मुख्य मंदिर में शिवलिंग अंदर की तरफ है जो कि फर्श पर चांदी की वेदी में काले पत्थर से बना 60 सेंटीमीटर ऊंचा शिवलिंग है।      
                    सामान्य श्रद्धालु ज्यादा करीब नहीं जा सकते थोड़ा दूर से ही हम दर्शन कर सकते हैं।

                 मंदिर में आप कैमरा मोबाइल नहीं ले जा सकते हैं और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा निशुल्क लॉकर रूम की व्यवस्था की गई है जहां आप अपना सामान रख सकते हैं इसके साथ ही स्थानीय दुकानों में भी लाॅकर सुविधा हैं जो कि पूर्णतः निशुल्क है परन्तु आपको उनकी दुकान से पूजन सामग्री, फूल मालाएं लेनी होगी।
                Well मंदिर के अंदर का माहौल बहुत भक्तिमय था चारों ओर हर हर महादेव, काशी विश्वनाथ, बम भोले के जयकारे लग रहे थे।

                            एक बात तो है भारतीय मंदिरों में भक्ति का एक अलग अनोखा सैलाब देखने को मिलता है शायद इसलिए मंदिरों को इतनी Positivity होती है यदि आप जरा भी निराश है तो यहां जाकर आप पुनः आशावादी बन जायेंगे, साथ ही सुकून भी आपको मिलेगा।
                     
                  Well मैंने भी कतारबद्ध होकर बाबा के दर्शन किए आज Finally मैंने 3 ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर लिए मन को एक अलग सुकून मिला।

काशी विश्वनाथ मंदिर शीघ्र दर्शन (VIP) टिकट मूल्य :- रु.300/-

ऑनलाइन VIP दर्शन और आरती पूजा टिकट बुकिंग के लिए वेबसाइट लिंक :- https://www.shrikashivishwanath.org



इस मंदिर में बाबा विश्वनाथ की पांच मुख्य आरतियाँ होती है।

प्रतिदिन सुबह 2:30 बजे इस मंदिर के किवाड़ खुलते है।
जिसके बाद 3 बजे से 4 बजे तक मंगल आरती होती है. दर्शनार्थी इस आरती में टिकट लेकर शामिल हो सकते हैं।
इसके बाद 4 बजे से सुबह 11 बजे तक इसे सबके लिए खोल दिया जाता है.
फिर 11:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक भोग आरती का आयोजन होता है।
12 बजे से शाम 7 बजे तक पुनः इस मंदिर में सार्वजनिक दर्शन की व्यवस्था है।
शाम 7 बजे सप्तऋषि आरती होती है।
रात 9 बजे तक सभी दर्शनार्थी मंदिर के भीतर दर्शन कर सकते हैं. उसके बाद 9 बजे श्रृंगार या भोज आरती होती है।
और अंत में रात 10:30 बजे शयन आरती प्रारंभ होती है जो 11 बजे ख़त्म हो जाती है।

     

                            "पर जब मैं यहां पहुंची तब मुझे कुछ नए तथ्य पता चले जैसे कि यह मंदिर असली मंदिर नहीं है असली मंदिर में तो मस्जिद बन गई है जहां अब मुसलमानों के द्वारा नमाज पढ़ी जाती है"

                                 ज्योतिर्लिंग दर्शन होने के पश्चात में निकल पड़ी अपनी अगले गंतव्य की तरफ........

बनारस के घाट

                          मंदिर में बाबा के दर्शन करने के बाद में निकल पड़े घाट की ओर.......
                             काशी विश्वनाथ के दर्शन करना था तो मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया था दर्शन के बाद ही मुझे जोरो की भूख लग गई तो घाट में पहुंचने से पहले मैंने पेट पूजा करने की सोची घाट वाले रास्ते में ही मुझे Madhur Milan Cafe  देखा तो मैंने यही कुछ खाने का सोचा

सस्ता और स्वादिष्ट खाना

पेट पूजा के बाद मैं फिर से निकल पड़ी घाट की तरफ

                               बनारस में 84 घाट हैं जो कि एक दूसरे से लगे हुए हैं इसमें से कुछ घाट बहुत महत्वपूर्ण है और अपनी विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं वहीं कुछ गौण हैं।
            घाटों के बारे में विस्तृत जानकारी मैंने नीचे दिए blog में दे दी है जहां आप जाकर पढ़ सकते हैं।
           
           
                    मन में बहुत हलचल थी हमेशा से ही नदी के किनारे और घाट मेरे प्रिय रहे हैं चाहे वह जबलपुर का ग्वारीघाट हो या महेश्वर का नर्मदा घाट यहां मुझे अलग ही सुकून मिलता है तो यही उत्साह और सुकून गंगा जी के प्रति भी था, गंगा जी से मिलने के लिए मैं कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी।
                   मंदिर से घाट लगभग 0.6 किलोमीटर की दूरी पर है जहां आप आसानी से पैदल पहुंच सकते हैं तो काशी विश्वनाथ मंदिर से बहुत सी गलियों से होते हुए आप घाट में पहुंच सकते हैं साथ आप बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर से भी घाट तक आ सकते हैं इसके बारे में मुझे पहले से पता नहीं था तो मैं तो बनारस की गलियों से होते होते ही घाट में आई।

           गंगा घाट का मुख्य आकर्षण दशाश्वमेध घाट है जहां पर मुख्य पुजारियों द्वारा गंगा आरती की जाती है जिसके साक्षी सभी लोग बनते हैं
             यहां आप घाट पर खड़े होकर या फिर नाव में सवार होकर आरती का आनंद ले सकते हैं यह सवारी नाव होती है जो ₹200 में आपको आरती और उसके बाद मणिकर्णिका घाट से हरिश्चंद्र घाट तक की यात्रा कराते हैं साथ ही हर घाट की विस्तृत जानकारी भी देते हैं
                     मैं घाट में लगभग 5:30 बजे पहुंच गई थी और आरती का समय लगभग 6:45 होता है तो पहले में गंगा किनारे कुछ समय तक बैठी रही और फिर एक सवारी नाव में बैठ गई जहां से आरती और गंगा जी दोनों की भव्यता का स्पष्ट दर्शन हो रहा था जैसे-जैसे आरती का समय नजदीक आ रहा था सभी नावों में श्रद्धालु आते जा रहे थे वही घाट पर भी भीड़ बढ़ने लगी थी

                                सूर्यास्त से पहले वाराणसी गंगा आरती के लिए दशाश्वमेध घाट पर तैयारी शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे दशाश्वमेध घाट पर लोगों की भीड़ जुटने लगी है। भीड़ में अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग शामिल हैं। वाराणसी में गंगा आरती देखने के लिए बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी आते हैं।
                       अंत में, पुजारी आते हैं और चबूतरे के सामने अपना स्थान ग्रहण करते हैं। गंगा आरती की शुरुआत शंखनाद से होती है। फिर वे एक हाथ में अगरबत्ती और बाएं हाथ में प्रार्थना की घंटी लेकर देवी गंगा की पूजा करते हैं।
           इसके बाद, बहुस्तरीय प्रार्थना दीपक लाए जाते हैं। पुजारी उन्हें उठाते हैं और इन दीपकों को एक लयबद्ध तरीके से आगे बढ़ाते हैं। यह तब होता है जब समारोह अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाता है और लोग इसे देखना बहुत पसंद करते हैं। दीयों की छोटी-छोटी लपटें अँधेरे वातावरण में प्रकाश के कण के समान प्रतीत होती हैं। पुजारी भारी दीपों को दक्षिणावर्त दिशा में घुमाते हैं और वे स्वयं उसी दिशा में घूमते हैं।
       
                   बाद में, पुजारी एक अन्य प्रकार का प्रार्थना दीपक लेते हैं जिसमें सांप जैसा फन होता है और उन्हें उसी तरह से हिलाते हैं। हम हमेशा इन कार्यक्रमों को बड़े विस्मय से देखते हैं। कभी कभी मैं सोचती हूँ, दीया गिर गया तो क्या होगा आखिरकार, वे काफी भारी हैं। लेकिन मुझे लगता है, वर्षों के अभ्यास और भक्ति के कारण ये लोग इतने परिपक्व हो जाते हैं कि किसी भी प्रकार की ग़लती की गुंजाइश नहीं होती।
                   प्रार्थना दीपों से पूजा समाप्त होने के बाद, पुजारी मोर पंख से बने पंखे और एक अन्य सफेद रंग का पंखा हिलाते हैं। ये वाराणसी में संपूर्ण गंगा आरती का एक हिस्सा हैं।

                    जैसे ही आरती समारोह अंत की ओर आता है, एक व्यक्ति भीड़ से दान और प्रसाद लेने के लिए फूलों से भरी एक बड़ी थाली लेकर आता है।
                    एक और व्यक्ति एक बड़े दीपक के साथ दिखाई देता है, ताकि लोग आशीर्वाद लेने के लिए ज्योति पर हाथ फेर सकें।
                         
                      समारोह के अंत में ये पुजारी नदी के किनारे जाते हैं और अनुष्ठान भजन गाते हुए नदी में पानी डालते हैं। यह समापन समारोह के अंत का प्रतीक है।     

आरती जब अपने चरम पर होती है तब माहौल और भक्तिमय हो जाता है हर जगह जयकारे सुनायी देने लगते हैं
रात के अंधेरे में आरती, दीपों और भक्ति का बहुत ही अद्भुत संगम बनता है।
वाकई में हमारे देश में कुछ ऐसी गतिविधियां है जो न केवल आपको अचंभित और आकर्षित करती है बल्कि इनका रंग इतना गाढ़ा होता है कि आप इसमें डूब ही जाते हो और गंगा आरती उन्हीं गतिविधियों में से एक है।

            आरती की रस्म शुरू होने के करीब 45 मिनट में खत्म हो जाती है तो सभी लोग तितर-बितर होने लगते हैं। और आरती में इतना रोमांचित होने के बाद मुझे जोरो की भूख लग जाती है और मैं पहुंच जाती हूं कुछ खाने के लिए अपने उसी Budget Restaurant में।
यहां Dinner में मैं छोले भटूरे खाती हूं जो बहुत Tasty होते हैं।

पेट पूजा करने के बाद मैं वापस अपने Hostel आ जाती हूं Hostel में कुछ time common area, में बिताने के बाद मैं अपने रूम में आ जाती हूं

आज के दिन का सफर तो यही समाप्त होता है पर बनारस का सफर अभी भी जारी है......

                      अगले दिन की कहानी जल्द ही......

                                                               क्रमशः.......
        

Post a Comment

1 Comments

  1. काशी के कोतवाल भैरव की भूमि पर आना ही बहुत ही बड़ी बात है . शिव नगरी साक्षात् कैलाश पर्वत की यात्रा का सुख देती है .

    ReplyDelete